दुनिया में बहुत से धर्म है और सब धर्मो के अपने अपने रीती रिवाज है अपने त्यौहार है | सब धर्मो के अपने अपने अलग कैलेंडर होता है। उसी तरह मुस्लिम कैलेंडर को हिजरी कहा जाता है | मुहर्रम(Muharram) इस कैलेंडर का पहला महीना होता है |
इस महीने के शुरूआती 10 दिन बहुत खास होते हैं | इस्लामिक कैलेंडर के पहले महीने का नाम मुहर्रम है |
मुसलमानों के लिया ये महीना बहुत ही पवित्र होता है | इस महीने से इस्लाम का नया साल शुरू होता है |
आइए जानते है के इस महीने को क्यों पवित्र माना जाता है :
क्यों मानते है इस को सबसे पवित्र महीना
इस्लामिक कैलेंडर के पहले महीने का नाम मुहर्रम (Muharram) है | इस महीने से इस्लाम का नया साल शुरू होता है |
मोहर्रम महीने के 10वें दिन यानी 10 तारीख को रोज-ए-आशुरा कहा जाता है | इस दिन को इस्लामिक कैलेंडर में बहुत ही अहम माना जाता है ,क्योंकि इसी दिन हजरत इमाम हुसैन की शहादत हुई थी |
इस्लाम धर्म के संस्थापक हजरत मुहम्मद साहब के छोटे नवासे हजरत इमाम हुसैन ने कर्बला की जंग में उन्होंने इस्लाम की रक्षा के लिए खुद को कुर्बान कर दिया था |
इस जंग में उनके साथ उनके 72 साथी भी शहीद हुए थे |
कर्बला इराक का एक शहर है, जहां पर हजरत इमाम हुसैन का मकबरा है यह मकबरा उसी स्थान पर बनाया गया था, जहां पर इमाम हुसैन और यजीद की सेना के बीच जंगन हुई थी |
यह स्थान इराक की राजधानी बगदाद से करीब 120 किमी दूर स्थित है | इसलिए इस महीने को सबसे पवित्र महीना माना जाता है |
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कौन थे इमाम हुसैन, किसने मारा था उन को ?
– हजरत इमाम हुसैन इस्लाम धर्म के संस्थापक हजरत मुहम्मद साहब के छोटे नवासे(grandson) थे |इसी दौरान यजीद नाम का एक तानाशाह शासक था जो जुल्म के बल पर हुकुमत(Ruling) करना चाहता था | यजीद चाहता था कि इमाम हुसैन भी उनका कहना मानें, लेकिन उन्होंने यजीद की बात मानने से इंकार कर दिया |
– मुहर्रम महीने की 2 तारीख को जब इमाम हुसैन अपने परिवार और साथियों के साथ कूफा शहर जा रहे थे, तभी रास्ते में यजीद को फौज ने उन्हें घेर लिया, जहां पर उन को रोका गया वो जगह कर्बला थी |
– इमाम हुसैन ने फुरात नदी के किनारे तम्बू लगाकर वही पर ठहर गए | लेकिन यजीदी फौज ने इमाम हुसैन के तम्बुओं को फुरात नदी के किनारे से हटाने का आदेश दिया और उन्हें नदी से पानी लेने की इजाजत तक नहीं दी |
– इमाम जंग का इरादा नहीं रखते थे क्योंकि उनके काफिले में केवल 72 लोग शामिल थे | जिसमें छह माह का बेटा उनकी बहन-बेटियां, पत्नी और छोटे-छोटे बच्चे शामिल थे | यह तारीख एक मोहरर्म थी, और गर्मी का वक्त था |
– मुहर्रम की 7 तारीख को इमाम हुसैन की बस्ती में पानी खत्म हो गया | तीन दिन तक इमाम हुसैन सहित सभी लोग भूखे-प्यासे इबादत करते रहे | 9 मुहर्रम की रात को इस्लाम में शबे आशूर के नाम से जाना जाता है।
– 10 मुहर्रम को इमाम हुसैन के साथियों और यजीद के सेना में मुकाबला हुआ और इमाम हुसैन अपने साथियों के साथ नेकी की राह पर चलते हुए शहीद हो गए। इस तरह कर्बला की यह बस्ती 10 मुहर्रम को उजड़ गई। इस जंग में इमाम हुसैन का एक बेटे जैनुलआबेदीन जिंदा बचे क्योंकि 10 मोहर्रम को वह बीमार थे और बाद में उन्हीं से मुहमम्द साहब की पीढ़ी चली |
क्यों निकाले जाते हैं ताजिए ?
- यह इराक में इमाम हुसैन का रोजा-ए-मुबारक ( दरगाह ) है, जिसकी हुबहू कॉपी (शक्ल) बनाई जाती है, जिसे ताजिया कहा जाता है |
- ताजिए निकलने की शुरुआत भारत से हुई थी |
- तत्कालीन बादशाह तैमूर लंग ने मुहर्रम के महीने में इमाम हुसैन के रोजे (दरगाह) की तरह से बनवाया और उसे ताजिया का नाम दिया था |
- इस जुलूस में मुस्लिम लोग पूरे रास्ते भर मातम मनाते हैं और साथ में यह भी बोलते हैं, या हुसैन, हम न हुए, सका अर्थ है कि हजरत इमाम हुसैन हम सब गमजदा हैं , कर्बला की जंग में हम आपके साथ नहीं थे, वरना हम भी इस्लाम की रक्षा के लिए अपनी कुर्बानी दे देते |
- इन ताजियों को कर्बला की जंग के शहीदों का प्रतीक माना जाता है | इस जुलूसकी शुरुआत इमामबाड़ा से होती है और समापन कर्बला में होता है और सभी ताजिए वहां दफन कर दिए जाते हैं |
- मातम को दर्शान के लिए मुस्लिम इस दिन काले कपड़े पहनते हैं |
भारत में कब है आशूरा (मुहर्रम) ?
भारत में मुहर्रम की शुरुआत 31 जुलाई को हुई , इसलिए आशूरा 09 अगस्त दिन मंगलवार को है |
पाकिस्तान और बांग्लादेश में भी आशूरा 09 अगस्त को ही है |
वहीं सऊदी अरब, ओमान, कतर, संयुक्त अरब अमीरात, इराक, बहरीन और अन्य अरब देशों में मुहर्रम का प्रारंभ 30 जुलाई से हुआ था, इसलिए वहां पर आशूरा 08 अगस्त दिन सोमवार को है |